Friday, April 14, 2017

दो क़दम मेरे भी..

भाग-दौड़ में, इस ज़िन्दगी की,
दो क़दम मेरे भी।

चहल-पहल से सन्नाटे तक चलते,
दो कदम मेरे भी।

बेसब्र और तेज़ रहकर,
गाँठें इन राहों की सुलझाते,
छोटी राह टटोलते आगे बढ़ रहे।

रास्ते की ठोकरों से बचते,
कभी ठोकरों से सीखते,
हुनर चलने का सीख रहे।

हज़ारो की भीड़ में, अपने वज़ूद के लिए लड़ते,
छोटे पड़ावों पर ठहरे बिना मंज़िल ढूँढते,

घिसती चप्पलों की परवाह किये बिना,
लगातार...

भाग दौड़ में इस ज़िन्दगी की,
दो कदम मेरे भी।

~गिरीश

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अंतर्द्वंद

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