ख़फ़ा उस राज़ से, जिनमें दबे किस्से मुलाक़ातों के।
ख़फा अल्फ़ाज़ से, जो राज़ बन बैठे मुलाक़ातों में।
ख़फ़ा उस आज से, जो कल की न उम्मीद दे पाए।
ख़फ़ा मोहताज़ पन्नों से, जो खाली है अभी तक भी।
ख़फ़ा वो ख़त, वो टूटे लफ़्ज़, वो स्याही के चन्द क़तरे,
और दहलीज़, जिस पर है पड़े ख़त, हार कर हिम्मत।
गर हिम्मत जुटा पाएँ उन्हें उठाने और देने की,
करेंगे क्या दरारों का जो हमने मोड़ कर हैं दी।
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