Friday, April 14, 2017

दो क़दम मेरे भी..

भाग-दौड़ में, इस ज़िन्दगी की,
दो क़दम मेरे भी।

चहल-पहल से सन्नाटे तक चलते,
दो कदम मेरे भी।

बेसब्र और तेज़ रहकर,
गाँठें इन राहों की सुलझाते,
छोटी राह टटोलते आगे बढ़ रहे।

रास्ते की ठोकरों से बचते,
कभी ठोकरों से सीखते,
हुनर चलने का सीख रहे।

हज़ारो की भीड़ में, अपने वज़ूद के लिए लड़ते,
छोटे पड़ावों पर ठहरे बिना मंज़िल ढूँढते,

घिसती चप्पलों की परवाह किये बिना,
लगातार...

भाग दौड़ में इस ज़िन्दगी की,
दो कदम मेरे भी।

~गिरीश

Wednesday, April 12, 2017

आज से कल । जीवनचक्र

जब बस्ता रखा था कंधो पर उन हाथों ने,
ज़िम्मेदारी निभाने की उम्मीदें थी उन्हें मुझसे।

पर बोझ समझ नही आया, शायद उस ऊँगली के कारण।
कभी रास्ते भी भूला नही, पलटा नहीं बस आगे बढ़ा।

हाँ कुछ गड्ढे ज़रूर आये थे, जो की उड़ कर पार कर गया।
और कुछ खरोचें गिरने की, जिनका मुझसे ज़्यादा दर्द उन्हें हुआ।

वक़्त बीता ऊँगली वापस खिंच गई ज़िम्मेदारियों का एहसास आया,
बस एक खटकता ख़्याल मन में, क्या वो क़र्ज़ मैं चुका पाया?

जवाब मिला आज,
जब आई है ज़िम्मेदारी कंधों पर,
कोई ऊँगली नहीं बस एक हाथ, मेरी ऊँगली थामे..
कर रहा इंतज़ार उस बस्ते का, जिसे कंधे पर रख..

उम्मीदें जुड़ेगी ज़िम्मेदारी निभाने की।

Tuesday, April 11, 2017

उसे शिकायत नही, बस इश्क़ है..

उसे शिकायत नही, बस इश्क़ है।
उसकी परवाह को वो इश्क़ बताती है..
और इश्क़ भी एकतरफ़ा और पूरा।

उसे फर्क नही पड़ता कदमो से मेरे,
खुदको परछाई जो मानती है।
ना रास्ता जानती है, ना रास्ता बनाना।
बस वहीं जहाँ मैं, और यही दोहराना।

समझाया जब मैंने उसे उन राहो के बारे में,
जो अँधेरी है और ज़रूरी भी,
जहाँ बिछाड़ती है परछाइयाँ सभी।

जवाब था,
उसे शिकायत नही, बस इश्क़ है।

~गिरीश

आप जैसा हूँ, पर अलग हूँ।

आप जैसा हूँ, पर अलग हूँ।

कहानियां मेरी भी है, पर सारी अधूरी है..
छोटी इतनी, चाय की कुछ चुस्कियों जितनी ।
और दिलचस्प इतनी, की चाय अधूरी लगे अगली बार..

मैं कैसा हूँ ये समझाना मुश्किल है, शायद ये कहानियां कर पाए।
चमकीली आँखों सी खुशनुमा, कभी पिघलती आँखों सी संगीन।
किस्से जो सोचे ना जा सके, और ज़ायका उनमे नमकीन।

कुछ कहानियां ख़ास है, कहीं ख़ास बताने का अंदाज़।
कुछ जुड़े लोगो से जुड़ी और कुछ उनसे दूरी के राज़।

सोचता हूँ वो भी कहानी बता ही दूँ,
जिसे याद रखना मुश्किल नही।

मगर वो खुलासा ना कर दे, कि मैं क्यों आखिर ऐसा हूँ।
मैं आप जैसा क्यों हूँ, और अलग कैसे?

~गिरीश

अंतर्द्वंद

ख़फ़ा उस राज़ से, जिनमें दबे किस्से मुलाक़ातों के। ख़फा अल्फ़ाज़ से, जो राज़ बन बैठे मुलाक़ातों में। ख़फ़ा उस आज से, जो कल की न उम्मीद दे पाए। ...